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Tuesday, March 29, 2011

डा. ऋषभदेव शर्मा जी के द्वारा कविता शिक्षण की व्याख्यान !!!

                      *** कविता शिक्षण ***
साहित्य - शिक्षण के पाठ्यबिंदु :

                                                                                                          डा. ऋषभ देव शर्मा ...
   डा. ऋषभदेव शर्मा जी के द्वारा कविता शिक्षण की व्याख्यान !!!  
 ( दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रशिक्षण महाविद्यालय में )

(क)
             * साहित्यिक पृष्ठभूमि : 6
              * साहित्यिक रूढ़ियाँ तथा - समीक्षात्मक प्रतिमान : 5
              * साहित्यिक कृति : 4
(ख)
              * साहित्यिक कृति का गठन : 3
              * साहित्यिक कृति की बुनावट : 2
              * साहित्यिक कृति की भाषा : 1


         साहित्यिक कृति की वाचनगत विशिष्टता :
दो स्तर :
             * शब्दार्थ बोधक वाचन
             * साहित्यार्थ बोधक वाचन
  भाषा के रूप पर प्रायोगिक बिंदु
            * अपेक्षया अधिक अपरिचित शब्द
     (सामान्य शब्द ,पारिभाषिक शब्द,सांस्कृतिक शब्द )
            * विशिष्ट सह प्रयोग
(भाषिक सह प्रयोग, रूढ़ लाक्षणिक प्रयोग,-मुहावरें आदि )
            * सूक्ति


            * विशिष्ट प्रसंग
(पूरा कथा,इतिहास,भूगोल से सम्बंदित आदि )
          
            * व्याकरणिक विशेषताएँ
  (संरचनात्मक आदि)


कृति की बुनावट के स्तर पर

विशिष्ट साहित्यिक प्रभाव के निष्पादक


उपकरण--
                 शब्दालंकार,
                 अर्थालंकार,
                 प्रयोजनमूलक लाक्षणिक प्रयोग,
                 बलात्मक चयन,
                 विचलित प्रयोग आदि .


                 कृति के गठन के व्यापक स्तर पर : 
               बिम्ब,
                    कथावस्तु ,
                    चरित्र  ,
                   समग्रानुभूति आदि..


साहित्यिक रूढ़ियों की कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :
* कथावर्णन के प्रकार
(संवाद शैली, आतंरिक एकालाप शैली , पात्र शैली,सामान्य वर्णनात्मक शैली )

       * चरित्र चित्रण की पद्दतियाँ
(पात्रों का विशिष्ट नामकरण, प्रत्यक्ष चित्रण, परोक्ष चित्रण )
 भाषा समुदाय की सांस्कृतिक पृष्टभूमि :

यहाँ संस्कृति का व्यापक अर्थ अभीष्ट है


इस में भाषा-समुदाय का सारा भौतिक ,भावात्मक ,बौद्दिक ,विश्वासपरक, तथा सामाजिक
 समीक्षात्मक प्रतिमान का प्रसंग
समीक्षात्मक भाषा (शब्दावली तथा वाक्य विन्यास) एवं उससे अभिव्यक्त व्यंजनायें


हर  भाषा में साहित्य समीक्षा की भाषा में कुछ अंतर दिखाई पड़ते है जो प्रायः निम्न लिखित कोटियों में होते है


पारिभाषिक शब्द तथा मूल्यांकनपरक शब्द ..


हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
                                                                                                             - जयशंकर प्रसाद 
                                            कविता पाठ

तुम कनक किरण के अंतराल में

लुक चिप कर चलते हो क्यों ?

नत मस्तक गर्व वहन करते
यौवन  के घन , रस खान ढरते

हे लाज भरे सौदर्य बता दो

मौन बने रहते हो क्यों ?

अधरों के मधुर कगारों में

कल-कल दवानी के गुन्जारों में

मधु सरिता सी यह हंसी तरल

अपनी पीते रह्ते हो क्यों ?

बेला विभ्रम की बीत चली

रजनी गंधा की कली खिली


भाषा स्तरीय पाठ बिंदु

विशिष्ट शब्दों का अर्थ


* कनक - स्वर्ण,सोना; लुक छिपकर-बहुत गुप्त रूप से ; घन-घना; कन - कण; ढरते - लुढ़कते , बहते ; कगार - ऊँचा किनारा ;  विभ्रम - अस्थिरता,उत्कंठा ; बेला - समय,घड़ी;
मलय-आकुलित - (चन्दन पर्वत को स्पर्श कर आनेवाले) पवन के सामान चंचल; दुकूल-रेशमी वस्त्र ;
कलित -विभूषित



बनावट स्तरीय पाठ्य बिंदु
लाक्षणिक प्रयोग :
लाज भरा सौंदर्य = लज्जाशील सुंदर नारी ; कनक किरण का अंतराल = स्वर्णिम छठा .

विशिष्ट चयन : 
लुक छिपकर = लज्जा की कोमलता का अभिव्यंजक शारीरिक व्यापार ;विभ्रम की बेला =प्रिय मिलन की आतुरता को प्रकट करने वाली अभिव्यक्ति .

सादृश्य - विधान की अभिव्यक्तियाँ :
अधरों का मधुर कगार = ओठ रूपी ऊंचे किनारे ; सांध्य मलय-आकलित =संध्याकालीन मलय

गठन स्तरीय पाठ्य बिंदु
* बिम्ब
* चाक्षुस बिम्ब
गुण-कोमलता /माधुर्य

                    साहित्यिक भाषा स्तरीय पाठ्य बिंदु :

* नारी सौन्दर्य वर्णन की छायावादी परंपरा के अनुसार चरम सौंदर्य का मधुर प्रभावपरक तथा स्थूल का सूक्ष्म रूप में वर्णन .

* मानव सौंदर्य के वर्णन में प्रकृति के उपकरणों का पृष्टभूमि  के रूप में अथवा अभिव्यक्ति -वैशिष्ठ्य  के अंग के रूप में वर्णन .

सम्बोधानात्मकता

 समीक्षात्मक भाषा सतरीय पाठ्य बिंदु
    समीक्षात्मक भाषा विभिन्न भाषाओं के साहित्य की अपनी-अपनी रूढ़ियाँ होती हैं .
* पारिभाषिक शब्द -निर्देशात्मक :
लाज भरा सौंदर्य = लाक्षणिक प्रयोग; अधरों का मधुर कगार =रूपक अलंकार ; मधु सरिता सी यह हंसी = उपमा अलंकार ;तरल हंसी = विशेषण वक्रता ; सांध्य मलय -आकुलित = उपमा अलंकार .

* निष्कर्ष - स्तरीय मूल्यांकन परक शब्दावली :
 नारी सौंदर्य का कोमल , सात्विक-रोमानी चित्तरंजक ,तथा प्रधानतया लाक्षणिक शैली में अलंकृत वर्णन . श्रेष्ट शब्द चयन तथा संगीतात्मक वर्ण विन्यास का उदहारण .
सम्बोधानात्मकता से काव्योचित रोमानीपन की निष्पत्ति .
छायावादी काव्यदारा का स्तरीय नमाना 'प्रसाद' की....

* साहित्य- शिक्षण में लक्ष्य -भाषा (जिस भाषा में साहित्यिक रचना रची गयी है ) तथा निरूपक भाषा (साहित्यिक रचना की समीक्षा के लिए प्रयुक्त भाषा ),दोनों ही पाठ्य बिंदु हैं .

वास्तविक शिक्षण व्यापार में इन दोनो का  मिश्रित  व्यवहार  ही होता है- लक्ष्य भाषा केंद्र में रहती है , निरूपक भाषा  परिधि  पर  . विशेष बात यह है की भाषा प्रयोग के इन  दो  प्रकार्यात्मक  भेदो की हमें चेतना हो .

सन्दर्भ 

* प्रो. सुरेश कुमार, साहित्य शिक्षण के पाठ्यबिंदु (आलेख ), साहित्य भाषा और साहित्य शिक्षण 
      (१ ९९२ -उच्च शिक्षा और शोध संस्थान , 
      दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास ),
            पृष्ट : २६७-२७७  







डा. ऋषभदेव शर्मा जी के द्वारा कविता शिक्षण की व्याख्यान !!!
(यह विडियो में कुछ अंश छूट गए है लेकिन हमारें सर का हर एक पॉइंट भी हमारे लियें अमूल्य है इसीलिए जो विडियो मिला है उसी को एडिट कर दिया गया है( for B.Ed trainees& HPT Trainees))