स्वागत

राधाकृष्ण मिरियाला ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है , पधारने के लिए धन्यवाद!

Saturday, December 31, 2011

सभी ब्लॉगर मित्रों को नव -वर्ष की शुभकामनाएँ!!!

नव वर्ष २०१२ मंगलमय  हो !!!!!






New year cards

Sunday, October 23, 2011

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद केंद्र से विकसित एक मात्र मासिक पत्रिका स्रवंति .

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद केंद्र से विकसित एक मात्र मासिक पत्रिका 
स्रवंति .





`स्रवंति' दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (आंध्र) द्वारा प्रकाशित 56 वर्ष पुरानी पत्रिका है. अपने वर्तमान स्वरूप में `स्रवंति' द्विभाषा मासिक पत्रिका है जिसमें हिंदी और तेलुगु की सामग्री सम्मिलित होती है. इन दिनों इसका संपादन उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के अध्यक्षप्रो.ऋषभदेव शर्मा के निर्देशन में डॉ.जी.नीरजा (सह संपादक ) कर रही हैं. जनवरी २०११ के अंक से इस पत्रिका को इंटरनेट पर भी उपलब्ध कराया जा रहा है. इस पत्रिका अनेक शोधार्थियों के लिए कई प्रकार से उपयोग हो रहा है . ...

प्रो.ऋषभदेव शर्मा  जी को और  डॉ.जी.नीरजा   जी को  विशेष रूप से धन्यवाद ....

Wednesday, October 5, 2011

नवरात्री की शुभकामनाएँ!!!

लक्ष्मी का हाथ हो ,सरस्वती का साथ हो,
गणेश का निवास हो, और माँ दुर्गा के आशीर्वाद से आपके जीवन में प्रकाश ही प्रकाश हो !!!!
सभी को नवरात्री की शुभकामनाएँ!!!

Saturday, October 1, 2011

गाँधी जयन्ती की शुभकामनाएँ!!!

गाँधी जयन्ती की शुभकामनाएँ!!!

सत्य !

सत्य का दिव्य संदेश
सत्य.... क्या है? यह एक कठिन प्रश्न है, लेकिन अपने लिए मैंने इसे यह कहकर सुलझा लिया है कि जो तुम्हारे अंतःकरण की आवाज कहे, वह सत्य है। आप पूछते हैं कि यदि ऐसा है तो भिन्न-भिन्न लोगों के सत्य परस्पर भिन्न और विरोधी क्यों होते हैं? चूंकि मानव मन असंख्य माध्यमों के जरिए काम करता हैऔर सभी लोगों के मन का विकास एक-सा नहीं होता इसलिए जो एक व्यक्ति के लिए सत्य होगा, वह दूसरे के लिए असत्य हो सकता है। अतः जिन्होंने ये प्रयोग किए हैं, वे इस परिणाम पर पहुंचे हैं कि इन प्रयोगों को करते समय कुछ शर्तों का पालन करना जरूरी है।
ऐसा इसलिए है कि आजकल हर आदमी किसी तरह की कोई साधना किए बगैर अंतःकरण के अधिकार का दावा कर रहा है, और हैरान दुनिया को जाने कितना असत्य थमाया जा रहा है। मैं सच्ची विनम्रता के साथ तुमसे कहना चाहता हूं कि जिस व्यक्ति में विनम्रता कूट-कूट न भरी हो, उसे सत्य नहीं मिल सकता। यदि तुम्हें सत्य के सागर में तैरना है, तो तुम्हें अपनी हस्ती को पूरी तरह मिटा देना होगा ।
यंग, 31-12-1931, पृ. ४२८


केवल सत्य और प्रेम-अहिंसा-ही महत्वपूर्ण है। जहां ये हैं, वहां अंततः सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस नियम का कोई अपवाद नहीं है।
यंग, 18-8-1927, पृ. २६५


Mahatma Gandhi : God is Life, Truth, Light, Love and The supreme Good..




Thursday, September 15, 2011

गुरुवर श्री .कडारु मल्ल्या जी को एवं श्री डॉ.पी. श्रीनिवास राव जी को हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!!


हिंदी दिवस के अवसर पर आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी द्वारा हिंदी भाषा के विकास के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले  व्यक्तियों का सम्मान किया गया है.. जिसमें  वर्ष २०११ के लिए कडारु.मल्ल्या जी को पद्मभूषण  डॉ. मोटूरी सत्यनारायण पुरस्कार के अंतर्गत एक लाख रुपयें नकद पुरस्कार आन्ध्र प्रदेश राज्य के उपमुख्या मंत्री         श्री .दामोदर राजनरसिम्हा  एवं हिंदी अकादमी के अध्यक्ष श्री . लक्ष्मी प्रसाद जी ने प्रदान किया है ...



उसी प्रकार से तेलुगु भाषी हिन्दी युवा लेखक पुरस्कार के लिए पच्चीस हज़ार रुपये नकद पुरस्कार एवं ज्ञापिका  
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक श्री.पी .श्रीनिवास राव जी को प्राप्त हुआ है ..
इस अवसर पर 
गुरुवर श्री .कडारु मल्ल्या जी को एवं  श्री डॉ.पी. श्रीनिवास राव जी को हार्दिक शुभकामनाएँ!!!!!
डॉ.पी. श्रीनिवास राव जी को बधाई.......

विडियो भाग 




.....चित्रावली .....




स्वतंत्र वार्ता १५ सितम्बर ...





Wednesday, September 14, 2011

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद केंद्र में हिंदी दिवस समारोह संपन्न !!!!!!!

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद केंद्र में हिंदी दिवस समारोह संपन्न !!!!!!!

                            दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, बी.एड .प्रशिक्षण महाविद्यालय एवं हिंदी प्रचारक प्रशिक्षण महाविद्यालयों ने संयुक्त रूप में हिंदी दिवस समारोह मनाया है .इस  समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में स्वतंत्र वार्ता के संपादक डॉ.राधेश्याम शुक्ल जी आये है .श्री शुक्ल जी को सभा के तीनों विभागों के प्राध्यापकगण विशेष आह्वान किया है .

                               समारोह की अध्यक्षता उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो.ऋषभदेव शर्मा जी ने किया है.इस सभा में संपर्क अधिकारी श्री हलेमनी जी,सचिव पी.ए.राधाकृष्णन जी, और बी.एड प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्राचार्या.डॉ. सीता नायुडू जी , तथा हिंदी प्रचारक प्रशिक्षण महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ.लक्ष्मी उमाराणी जी शामिल है..

                           सभा के आरंभ में दीप प्रज्वलित किया गया है . सचिव डॉ.पी.ए.राधाकृष्णन जी अपने सन्देश देते हुए हिंदी दिवस की महत्व को बताया है.


डॉ.बलविंदर कौर जी  ने भारत के गृह-मंत्री पी.चिदंबरम जी के सन्देश को सभा में वचन किया है वह यहाँ प्रस्तुत है ...

विशिष्ट अतिथि के रूप में आये हुए डॉ. राधेश्याम शुक्ल जी का विशेष व्यख्यान !!!

part-1




part-2


part-3




                   प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने एक लघु कथा कहते हुए सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनएं बताये है , अंत में संपर्क अधिकारी  श्री हलेमनी जी ने धन्यवाद प्रकट किया है ,, सम्पूर्ण सभा को आनंद -उत्साहों के साथ रखते हुए एक विशेष रूप से संचालन कार्य डॉ. जी .नीरजा जी ने किया  है ...


सभी को पुनः हिंदी दिवस की बधाई.....
सम्पूर्ण रिपोर्ट के लिए यहाँ  क्लिक कीजिये ....
ऋषभ उवाच: हिंदी-दिवस जनभाषा की गौरव-प्रतिष्ठा का दिन है - डॉ. राधेश्याम शुक्ल



Tuesday, September 13, 2011

हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ !!!!





संविधान सभा द्वारा 14 सितंबर, 1949 को सर्वसम्मति से हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया था, तब से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है.  इसलिए इसका सम्मान करना चाहिए और बहुतायत में प्रयोग करना चाहिए.


इस अवसर पर सभी हिन्दी प्रेमियों को हार्दिक शुभकामनाएँ!!!

Tuesday, September 6, 2011

शिक्षक दिवस सुसंपन्न !!!!!



शिक्षक दिवस सुसंपन्न !!!!!


कुल सचिव प्रो.दिलीपसिंह एवं प्रो.ऋषभदेव शर्मा जी के अमूल्य वचन !!!!!
                               


हैदराबाद, ६ सितम्बर,२०११.


साहित्य और अन्य विषयों की शिक्षा में एक मूलभूत अंतर यह है कि साहित्य में व्यक्‍तित्व विकास और जीवन मूल्यों की शिक्षा अंतर्निहित रहती है जबकि अन्य विषयों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. इसलिए हामारे जीवन में साहित्य के शिक्षक का महत्व अपेक्षाकृत अधिक होता है. वह साहित्य में निहित उच्च मानवीय गुणों के प्रति हमारे मन को उन्मुख और संस्कारित करता है. यह संभव है कि कोई विशेष जीवन मूल्य स्वयं शिक्षक में विद्‍यमान न हो तो भी साहित्य के माध्यम से छात्र के मन उसे जगाया जा सकता है. यहाँ हम हिंदी साहित्य की चर्चा कर सकते हैं कि किस प्रकार पद्‍मावत में शिक्षक का प्रतीक हीरामन तोता जीवन और अध्यात्म से जुड़ी पते की बातें करता है. इसी प्रकार कबीर, तुलसी और रहीम के दोहों के माध्यम से बड़ी सहजता से नैतिक शिक्षा दी जा सकती है. साहित्य में प्रकट और परोक्ष रूप से शिक्षा के सूत्र समाए हुए हैं. अगर कोई साहित्यकार प्रकृति का वर्णन करता है तो वह नदी, समुद्र, वृक्ष और बादल तक को शिक्षक बना देता है कि कैसे इनके माध्यम से परमार्थ और परोपकार जैसी उदार चीज़ें सीखी जा सकती है. यही कारण है कि बचपन से ही कोई भी साहित्यिक पाठ पढ़ाने के बाद हम से यह पूछा जाता है कि इस पाठ से आपको क्या सीख मिली. गणित या अर्थशास्त्र अथवा अन्य किसी विषय के पाठ में ऐसा नहीं होता. इसलिए साहित्य का छात्र भाग्यशाली है कि वह शिक्षक और पाठ दोनों के माध्यम से जीवन को श्रेष्‍ठ बनाने की शिक्षा प्राप्‍त कर सकता है.

ये विचार दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलसचिव प्रो.दिलीप सिंह ने यहाँ सभा के खैरताबाद परिसर में आयोजित उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के शिक्षक दिवस समारोह में अध्यक्ष पद से बोलते हुए व्यक्‍त किए. प्रो.सिंह ने आगे कहा कि साहित्य की ही भाँति भाषा भी हमारा शिक्षक है. उन्होंने कहा कि भाषा में सामाजिक और सांस्कृतिक अनेक ऐसे पहलू निहित होते हैं जिन्हें सीखकर हम लोक व्यवहार के साथ साथ व्यक्‍तित्व निर्माण के लक्ष्‍य को भी प्राप्‍त कर सकते हैं. उन्होंने ध्यान दिलाया है सभी भाषाओं के साहित्य में अनेक ऐसे पात्र मौजूद हैं जो हमें जीवन संघर्ष की शिक्षा देते हैं तथा हताशा के क्षणों में हमारे काम आते हैं. यदि प्राचीन साहित्य को छोड़ भी दें तो आज के कहानी और उपन्यासों में भी शिक्षा का यह गुण मिल जाएगा. प्रो.दिलीप सिंह ने याद दिलाया कि प्रेमचंद के उपन्यास ‘रंगभूमि’ का सूरदास अंधा अनपढ़ भिखारी होते हुए भी बहुत बड़ा अनाऔपचारिक शिक्षक है जो हमें समाज के लिए कुछ सार्थक कार्य करने की प्रेरणा देता है. डॉ.दिलीप सिंह ने बताया कि भाषा और साहित्य हमारे सबसे अधिक निकट सबसे बड़े शिक्षक है क्योंकि इनसे हम जीवन को सुंदर बनाने के रास्ते सीख सकते हैं अतः साहित्य को परीक्षा लिखने अथवा शोधग्रंथ रचने के लिए ही नहीं, जीवन और समाज को सार्थक बनाने की शिक्षा प्राप्‍त करने की दृष्‍टि से भी पढ़ना चाहिए.


इस अवसर पर संस्थान के छात्रों और शोधार्थियों ने वि्भागाध्यक्ष प्रो.ऋषभदेव शर्मा सहित सभी अध्यापकों डॉ.साहिरा बानू बी. बोरगल, डॉ.जी.नीरजा, डॉ.बलविंदर कौर, डॉ.गोरखनाथ तिवारी और डॉ.मृत्युंजय सिंह का उत्तरीय, स्मृति चिह्‍न, पुष्‍प गुच्छ और उपहार देकर सम्मान एवं अभिनंदन किया.                                                                                                                                                 



REPORT COLLECTED FROM



Sunday, September 4, 2011

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं ,......

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं ,......





आदर्श समाज के लिए मूल बीज अध्यापक ही है . विभिन्न क्षेत्रों में विकास हेतु नवीन विज्ञान की सृष्टि करनेवाला सिर्फ अध्यापक ही है . वैज्ञानिक हो या अन्य क्षेत्रों में जो कुशल निपुण, सब को तैयार करनेवाले मात्र अध्यापक ही है. अत्यंत पवित्र काम है अध्यापकीय काम .इसलिए हम अध्यापक को भगवान के समान मानते हैं .


गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु : गुरुर्देवो महेश्वर: 
गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरावेनम:!!!!!! 




सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं !!!!!





Wednesday, August 31, 2011

HAPPY VINAYAKA CHAVITHI

I wish u Happy Ganesh Chaturthi and
I pray to God for your prosperous life.
May you find all the delights of life,
May your all dreams come true.
“Happy Ganesh Chaturthi”




HAPPY VINAYAKA CHAVITHI 

सभी को गणेश चतुर्थी की शुभ-कामनाएँ!!!!!

Monday, August 29, 2011

पुरस्कारों के लिए हिंदी साहित्यकार चयनित!!




पुरस्कारों के लिए हिंदी साहित्यकार चयनित!! 


युवा हिंदी लेखक पुरस्कार  के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निर्देशक 
डॉ.पी .श्रीनिवास राव जी को आँध्रप्रदेश हिंदी अकादेमी के द्वारा चयन किया गया है .......
             गुरु वर  श्री श्रीनिवास राव जी को हार्दिक शुभ-कामनाएँ.....
उसी तरह पद्मभूषण श्री मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार के लिए श्री कडारु मल्ल्या जी को चुने गए है .,
उनके लिए बहुत- बहुत बधाई!

Friday, August 26, 2011

विश्वंबरा' संस्था की महासचिव डॉ.कविता वाचक्नवी जी की विशेष व्याख्यान !!!



विश्वंबरा' संस्था  की महासचिव डॉ.कविता वाचक्नवी जी की विशेष व्याख्यान !!! 



दक्षिण भारत  हिंदी प्रचार सभा के उच्च शिक्षा और शोध संस्थान में डॉ.कविता वाचक्नवी जी ने समाज भाषा विज्ञान पर विशेष व्याख्यान दिया है. डॉ. वाचक्नवी जी की व्याख्यान में सभा से उनकी संबंध और शोधार्थियों को आवश्यक सूचनाएं दिए है . कविता जी ने यह बात कहें की उनके द्वारा विरचित  समाज भाषा विज्ञान रंग शब्दावली -- निराला काव्य के बारे में बहुत कुछ जानकारी दिया है . उतना ही नहीं , सभा के भूत-पूर्व छात्रा के रूप में  उनकी अनुभूतियों को एम्.फिल शोधार्थियों के साथ बाँट लिया है.उनके अनुभवों को बताते हुए शोधार्थियों को मार्गदर्शन दिया है . उसी समय में उनकी सुमधुर वाणी से एक गीत को गाये,,वह गीत भी सुन्दर एवं संदेशात्मक रूप में है !

डॉ. वाचक्नवी जी की परिचय डॉ. जी.नीरजा जी ने दिया.अध्यक्षीय भाषण उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के विभागाध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने दिया और डॉ.वाचक्नवी जी के रचनाओं के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया .. अंत में डॉ.गोरखनाथ तिवारी जी ने धन्यवाद समर्पण किया है !

इस सन्दर्भ में मैं एक छात्र के रूप में विभागाध्यक्ष आदरणीय महोदय प्रो. श्री.ऋषभदेव शर्मा जी को बहुत -बहुत धन्यवाद समर्पित करना चाहता हूँ ताकि इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन शोधार्थियों के लिए अत्यंत प्रेरणादायक हो सकते है .

डॉ.कविता वाचक्नवी जी की रचनाएँ !
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अन्य जानकारी के लिए यहाँ क्लिक कीजिए!!


Friday, July 29, 2011

డా .సి .నారాయణ రెడ్డి గారికి హార్దిక జన్మదిన శుభాకాంక్షలు.
                                                         
సి.నారాయణరెడ్డి

జన్మ నామంసింగిరెడ్డి నారాయణరెడ్డి
జననం1931,జూలై 29
Flag of భారత దేశం హనుమాజీపేట, కరీంనగర్
నివాసంహైదరాబాద్, ఆంధ్రప్రదేశ్
ఇతర పేర్లుసినారె
వృత్తికవి,
గేయరచయిత,
&
సాహితీవేత్త
పదవిడాక్టర్ సి.నారాయణరెడ్డి

సి.నా.రె. గా ప్రసిద్ధి చెందిన సింగిరెడ్డి నారాయణరెడ్డి, తెలుగు కవి, సాహితీవేత్త. తెలుగు సాహిత్యానికి ఆయన చేసిన ఎనలేని సేవలకు గాను ఆయనకు 1988లో విశ్వంభర కావ్యానికి గాను ప్రతిష్టాత్మకమైన జ్ఞానపీఠ పురస్కారం లభించింది. సినారె రాజ్యసభ సభ్యునిగా కూడా నియమితుడయ్యాడు. తెలుగు చలన చిత్ర రంగములో ఆయన రాసిన పాటలు ఎంతో ప్రసిద్ధి చెందాయి.


బాల్యం, విద్యాభ్యాసం

సి.నారాయణరెడ్డి 1931, జూలై 29 (అనగా ప్రజోత్పత్తి సంవత్సరం నిజ ఆషాఢ శుద్ధ పౌర్ణమి రోజు) న కరీంనగర్ జిల్లాలోని మారుమూల గ్రామము హనుమాజీపేటలో జన్మించారు. తండ్రి మల్లారెడ్డి రైతు. తల్లి బుచ్చమ్మ గృహిణి.నారాయణ రెడ్డి ప్రాథమిక విద్య గ్రామంలోని వీధిబడిలో సాగింది. బాల్యంలోనీ హరికథలు, జానపదాలు,జంగం కథల వైపు ఆకర్షితుడయ్యాడు. ఉర్దూ మాధ్యమంలో సిరిసిల్ల లో మాధ్యమిక విద్య, కరీంనగర్ లో ఉన్నత పాఠశాల విద్య అభ్యసించాడు.తెలుగు ఒక ఐచ్ఛికాంశాంగానే ఉండేది. హైదరాబాదులోని చాదర్‌ఘాట్ కళాశాలలో ఇంటర్మీడియట్, ఉస్మానియా విశ్వవిద్యాలయంలో బి.ఏ కూడా ఉర్దూ మాధ్యమంలోనే చదివాడు. ఉస్మానియా విశ్వవిద్యాలయమునుండి తెలుగు సాహిత్యములో పోస్టుగ్రాడ్యుయేట్ డిగ్రీ, డాక్టరేటు డిగ్రీ పొందాడు.విద్యార్థిగా శ్రీకృష్ణదేవరాయ ఆంధ్రభాషా నిలయంలో శ్రద్ధగా అనేక గ్రంథాలు చదివారు.


ఉద్యోగం

ఆరంభంలో సికింద్రాబాదు లోని ఆర్ట్స్ అండ్ సైన్స్ కళాశాలలో అధ్యాపకుడిగా చేరి అటు తర్వాత నిజాం కళాశాలలో అధ్యాపకుడిగా పనిచేశాడుఉస్మానియా విశ్వవిద్యాలయములో ఆచార్యునిగా పనిచేస్తూ అనేక ఉన్నత పదవులు, పురస్కారములు పొందాడు. విశ్వనాధ సత్యనారాయణ తరువాత జ్ఞానపీఠ పురస్కారం పొందిన తెలుగు సాహీతీకారుడు ఆయనే.విశ్వంభర కావ్యానికి ఆయనకి ఈ అవార్డు లభించింది.
ఆయన ప్రముఖంగా కవి అయినప్పటికీ అయన కలం నుంచి పద్య కావ్యాలు, గేయ కావ్యాలు, వచన కవితలు, గద్య కృతులు, చలనచిత్ర గీతాలు, యాత్రా కథనాలు, సంగీత నృత్య రూపకాలు, ముక్తక కావ్యాలు, బుర్ర కథలు, గజళ్ళు, వ్యాసాలు, విమర్శన గ్రంథాలు, అనువాదాలు మొదలైనవి వెలువడ్డాయి. కళాశాల విద్యార్థిగా శోభ పత్రికకు సంపాదకత్వం వహించారు. రోచిస్, సింహేంద్ర పేరుతో కవితలు రచించేవాడు. సినారె కవిత తొలిసారి జనశక్తి పత్రిక లో అచ్చయింది. విద్యార్థి దశలోనే ప్రహ్లాద చరిత్ర, సీతాపహరణం వంటి పద్య నాటికలు, భలే శిష్యులు తదితర సాంఘిక నాటకాలు రచించాడు. 1953 లో నవ్వని పువ్వు సంగీత నృత్య నాటిక ప్రచురితమైంది. అది సి.నా.రె తొలి ప్రచురణ. వెంటనే జలపాతం, విశ్వగీతి, అజంతా సుందరి వెలువడ్డాయి.
రామప్ప సంగీత నృత్య రూపకం అన్ని భారతీయ భాషల్లోకి అనువాదమైంది. ఆయన పరిశోధన గ్రంథం ఆధునికాంధ్ర కవిత్వము - సంప్రదాయములు, ప్రయోగములు అత్యంత ప్రామాణిక గ్రంథంగా పేరు పొందింది. 1962 లో గులేబకావళి కథ చిత్రం లోని నన్ను దోచుకుందువటే వన్నెల దొరసానీ అనే పాటతో ప్రారంభించి నేటి వరకు 3500 గీతాలు రచించారు.
సినారె గ్రంథాలు ఇంగ్లీషు, ఫ్రెంచ్, సంస్కృతం, హిందీ, మళయాళం, ఉర్దూ, కన్నడం మొదలైన భాషల్లోకి అనువాదమయ్యాయి. ఆయనే స్వయంగా హిందీ, ఉర్దూ భాషల్లో కవితలల్లారు. అమెరికా, ఇంగ్లండు, ఫ్రాన్స్, రష్యా, జపాన్, కెనడా, ఇటలీ , డెన్మార్క్,థాయ్ ల్యాండ్, సింగపూర్, మలేషియా, మారిషస్, యుగోస్లోవియా, ఆస్ట్రేలియా, గల్ఫ్ దేశాలను సందర్శించారు. 1990 లో యుగోస్లేవియాలోని స్రూగా లో జరిగిన అంతర్జాతీయ కవి సమ్మేళనం లో భారతీయ భాషల ప్రతినిథిగా పాల్గొన్నారు.


పురస్కారాలు

  1. ఆంధ్రప్రదేశ్ సాహిత్య అకాడెమీ
  2. కేంద్ర సాహిత్య అకాడెమీ
  3. భారతీయా భాషా పరిషత్
  4. రాజలక్ష్మీ పురస్కారం
  5. సోవియట్-నెహ్రూ పురస్కారం
  6. అసాన్ పురస్కారం
మొదలైనవి ఆయన్ను వరించాయి. భారత ప్రభుత్వం ఆయనకు పద్మశ్రీ, పద్మభూషణ్ గౌరవాలతో సత్కరించింది. ఆంధ్ర, కాకతీయ, డాక్టర్ బీఆర్ అంబేద్కర్, మీరట్, నాగార్జున విశ్వ విద్యాలయాలు ఆయనకు గౌరవ డాక్టరేట్లను ప్రదానం చేశాయి.


కుటుంబం

ఆయనది బాల్య వివాహం. భార్య పేరు సుశీల. నలుగురు కుమార్తెలు గంగ, యమున, సరస్వతి, కృష్ణవేణి.

పదవులు

విద్యాత్మకంగా,పాలనా పరంగా ఎన్నో పదవులు నిర్వహించారు.
  1. ఆంధ్రప్రదేశ్ అధికార భాషా సంఘం అధ్యక్షులు (1981)
  2. అంబేద్కర్ విశ్వవిద్యాలయం ఉపాధ్యక్షులు (1985)
  3. పొట్టి శ్రీరాములు తెలుగు విశ్వవిద్యాలయం ఉపాధ్యక్షులు (1989)
  4. ఆంధ్ర ప్రభుత్వ సాంస్కృతిక వ్యవహారాల సలహాదారు (1992)
  5. రాష్ట్ర సాంస్కృతిక మండలి అధ్యక్షుడిగా ఏడేళ్ళు

భారత రాష్ట్రపతి ఆయన్ను 1997 లో రాజ్యసభ సభ్యుడిగా నామినేట్ చేశారు.ఆరేళ్ళపాటు సభలో ఆయన ప్రశ్నలు, ప్రసంగాలు, చర్చలు , ప్రస్తావనలు అందరి మన్ననలనూ అందుకున్నాయి.1993 నుంచి అంధ్ర సారస్వత పరిషత్తు అధ్యక్షుడిగా విలక్షణ కార్యక్రమాలు రూపొందించి తెలుగు భాషా సాహిత్య, సాంస్కృతిక అభ్యుదయానికి తోడ్పడుతున్నారు .
.

రచనలు

కవిత్వం:
  • విశ్వంభర
  • ఆరోహణ
  • మనిషి - చిలక
  • ముఖాముఖి
  • భూగోళమంత మనిషి
  • దృక్పథం
  • కలం సాక్షిగా
  • కలిసి నడిచే కలం
  • కర్పూర వసంతరాయలు
  • మట్టి మనిషి ఆకాశం
  • నాగార్జున సాగరం
  • కొనగోటి మీద జీవితం
  • రెక్కల సంతకాలు
  • వ్యక్తిత్వం
వ్యాసాలు:
  • పరిణత వాణి

పురస్కారాలు

  • డాక్టరేటు డిగ్రీ ఉస్మానియా విశ్వవిద్యాలయము నుండి తెలుగు సాహిత్యములో
  • 1988వ సంవత్సరానికి ప్రతిష్టాత్మకమైన జ్ఞానపీఠ పురస్కారం


అంతే కాదు ఆయన రచనలలో అన్నీ ఆణిముత్యాలే !!!
           మీ కోసం  రెండు పాటలు .
తెలుగు జాతి మనది నిండుగా వెలుగు జాతి మనది !!!!


వస్తాడు నా రాజు ఈ రోజు ....



 సేకరణ : రాధాకృష్ణ మిరియాల .
(మూలం :::వికీపీడియా )

Sunday, June 5, 2011

हरिवंश राय बच्चन ==== क्षण भर को क्यों प्यार किया था?


हरिवंश राय बच्चन  




जीवन

इलाहाबाद के कायस्थ परिवार में जन्मे बच्चन जी थे। इनको बाल्यकाल में बच्चन कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ बच्चा या संतान होता है । बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए । इन्होंने कायस्थ पाठशालाओं में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था । इसके बाद उन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंगरेजी में एम ए और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी एच डी किया ।








१९२६ में १९ वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो इस समय १४ वर्ष की थी । लेकिन १९३६ में श्यामा की टीबी के कारण मृत्यु हो गई । पांच साल बाद १९४१ में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं । इसी समय उन्होंने नीड़ का पुनर्निर्माण जैसे कविताओं की रचना की । तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए । अमिताभ बच्चन एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं । तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर के अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम किया है ।






कार्यक्षेत्र:
 इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन। बाद में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ रहे। अनन्तर राज्य सभा के मनोनीत सदस्य। बच्चन जी हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में अग्रणी हें।


निधन : १८ जनवरी २००३ को मुम्बई में।


प्रमुख कृतियां

उनकी कृति दो चट्टाने को १९६८ में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउन्डेशन ने उनकी आत्मकथा के लिये उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था।








हरिवंश राय बच्चन को भारत सरकार द्वारा सन १९७६ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये उत्तर प्रदेश से हैं।

हरिवंश राय बच्चन के संपूर्ण साहित्य की सूची

कविता संग्रह


तेरा हार (1932)

मधुशाला (1935)

मधुबाला (1936)

मधुकलश (1937)

निशा निमंत्रण (1938)

एकांत संगीत (1939)

आकुल अंतर (1943)

सतरंगिनी (1945)

हलाहल (1946)

बंगाल का काव्य (1946)

खादी के फूल (1948)

सूत की माला (1948)

मिलन यामिनी (1950)

प्रणय पत्रिका (1955)

धार के इधर उधर (1957)

आरती और अंगारे (1958)

बुद्ध और नाचघर (1958)

त्रिभंगिमा (1961)

चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962)

दो चट्टानें (1965)

बहुत दिन बीते (1967)

कटती प्रतिमाओं की आवाज़ (1968)

उभरते प्रतिमानों के रूप (1969)

जाल समेटा (1973)




क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,




पलक संपुटों में मदिरा भर,


तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?






‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’


और न कुछ मैं कहने पाया -


मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?






वह क्षण अमर हुआ जीवन में,


आज राग जो उठता मन में -


यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!


क्षण भर को क्यों प्यार किया था?


Collection: Nisha-Nimantran (Published: 1938)




॥हरिवंश राय बच्चन कृत मधुशाला॥




मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला

प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला

पहले भोग लगा लूँ तेरा, फ़िर प्रसाद जग पाएगा

सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला॥१॥



प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूणर् निकालूँगा हाला

एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला

जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका

आज निछावर कर दूँगा मैं, तुझपर जग की मधुशाला॥२॥



भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला

कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला

कभी न कण- भर ख़ाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!

पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला॥३॥



मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला

' किस पथ से जाऊँ? ' असमंजस में है वह भोलाभाला

अलग- अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूँ -

' राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला॥४॥



चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!

' दूर अभी है ' , पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला

हिम्मत है न बढ़ूँ आगे, साहस है न फ़िरूँ पीछे

किंकतर्व्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला॥५॥



मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला

हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला

ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का

और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला॥६॥



मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला

अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला

बने ध्यान ही करते- करते जब साकी साकार, सखे

रहे न हाला, प्याला साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला॥७॥



हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला

अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला

बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले

पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला॥८॥



लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला

फ़ेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला

ददर् नशा है इस मदिरा का विगतस्मृतियाँ साकी हैं

पीड़ा में आनंद जिसे हो, आये मेरी मधुशाला॥९॥



लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला

हषर्- विकंपित कर से जिसने हा, न छुआ मधु का प्याला

हाथ पकड़ लज्जित साकी का पास नहीं जिसने खींचा

व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला॥१०॥



नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला

कौन अपरिचित उस साकी से जिसने दूध पिला पाला

जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही

जग में आकर सवसे पहले पाई उसने मधुशाला॥११॥



सूयर् बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला

बादल बन- बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला

झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर

बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला॥१२॥



अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला

भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला

हर सूरत साकी की सूरत में परिवतिर्त हो जाती

आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला॥१३॥



साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला

तारक- मणि- मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला

अगणित कर- किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते

प्रति प्रभात में पूणर् प्रकृति में मुखरित होती मधुशाला॥१४॥



साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला

जिनमें वह छलकाती लाई अधर- सुधा- रस की हाला

योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए

देखो कैसें- कैसों को है नाच नचाती मधुशाला॥१५॥



वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर- सुमधुर- हाला

रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला

विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में

पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला॥१६॥



चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला

जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस- रंगी हाला

मन के चित्र जिसे पी- पीकर रंग- बिरंग हो जाते

चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला॥१७॥



हिम श्रेणी अंगूर लता- सी फ़ैली, हिम जल है हाला

चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला

कोमल कूर- करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं

पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला॥१८॥



आज मिला अवसर, तब फ़िर क्यों मैं न छकूँ जी- भर हाला

आज मिला मौका, तब फ़िर क्यों ढाल न लूँ जी- भर प्याला

छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी- भर कर लूँ

एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला॥१९॥



दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला

भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला

नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ

अब तो कर देती है केवल फ़ज़र् - अदाई मधुशाला॥२०॥



छोटे- से जीवन में कितना प्यार करूँ, पी लूँ हाला

आने के ही साथ जगत में कहलाया ' जानेवाला'

स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी

बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन- मधुशाला॥२१॥



क्या पीना, निद्वर्न्द्व न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला

क्या जीना, निरिंचत न जब तक साथ रहे साकीबाला

खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे

मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला॥२२॥



मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी- सी हाला!

मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!

इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरूँ

सिंधु- तृषा दी किसने रचकर बिंदु- बराबर मधुशाला॥२३॥



क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुबर्ल मानव मिट्टी का प्याला

भरी हुई है जिसके अंदर कटु- मधु जीवन की हाला

मृत्यु बनी है निदर्य साकी अपने शत- शत कर फ़ैला

काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला॥२४॥



यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला

पी न होश में फ़िर आएगा सुरा- विसुध यह मतवाला

यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है

पथिक, प्यार से पीना इसको फ़िर न मिलेगी मधुशाला॥२५॥



शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला

' और, और' की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला

कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!

कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला॥२६॥



जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला

जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला

जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी

जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!॥२७॥



देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक- सी हाला

देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला

' बस अब पाया! ' - कह- कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे

किंतु रही है दूर क्षितिज- सी मुझसे मेरी मधुशाला॥२८॥



हाथों में आने- आने में, हाय, फ़िसल जाता प्याला

अधरों पर आने- आने में हाय, ढलक जाती हाला

दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो

रह- रह जाती है बस मुझको मिलते- मिलते मधुशाला॥२९॥



प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फ़िर क्यों हाला

प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फ़िर क्यों प्याला

दूर न इतनी हिम्मत हारूँ, पास न इतनी पा जाऊँ

व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला॥३०॥



मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला

यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला

मानव- बल के आगे निबर्ल भाग्य, सुना विद्यालय में

' भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला॥३१॥



उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला

उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला

प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!

पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला॥३२॥



मद, मदिरा, मधु, हाला सुन- सुन कर ही जब हूँ मतवाला

क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला

साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा

प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला॥३३॥



क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला

क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला

पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!

मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला॥३४॥



एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी- सी हाला

भोला- सा था मेरा साकी, छोटा- सा मेरा प्याला

छोटे- से इस जग की मेरे स्वगर् बलाएँ लेता था

विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!॥३५॥



मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला

प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला

इस उधेड़- बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -

मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!॥३६॥



किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला

इस जगती के मदिरालय में तरह- तरह की है हाला

अपनी- अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते

एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला॥३७॥



वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला

जिसमें मैं बिंबित- प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला

मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है

भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला॥३८॥



मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला

पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला

साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया

मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला॥३९॥



कहाँ गया वह स्वगिर्क साकी, कहाँ गयी सुरभित हाला

कहाँ गया स्वपनिल मदिरालय, कहाँ गया स्वणिर्म प्याला!

पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?

फ़ूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला॥४०॥



अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला

अपने युग में सबको अद्भुत ज्ञात हुआ अपना प्याला

फ़िर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -

अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!॥४१॥



कितने ममर् जता जानी है बार- बार आकर हाला

कितने भेद बता जाता है बार- बार आकर प्याला

कितने अथोर् को संकेतों से बतला जाता साकी

फ़िर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला॥४२॥



जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला

जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला

जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है

जितना ही जो रसिक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला॥४३॥



मेरी हाला में सबने पाई अपनी- अपनी हाला

मेरे प्याले में सबने पाया अपना- अपना प्याला

मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा

जिसकी जैसी रूचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला॥४४॥



यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं- नहीं मादक हाला

यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं- नहीं मधु का प्याला

किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही

नहीं- नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला॥४५॥



कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला

कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!

पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा

कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!॥४६॥



विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला

यदि थोड़ी- सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला

शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई

जन्म सफ़ल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला॥४७॥



बड़े- बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला

कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला

मान- दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को

विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला॥४८॥


.... BIOGRAPHY ....

One of the famous Hindi Poem from Bachchan's great collection. by Dr. Harivansh Rai Bachchan, HarivanshRai Bachchan was a distinguished Hindi poet of Chhayavaad literarymovement (romantic upsurge) of early 20th century Hindi literature. Heis best known for his early work Madhushala. He is also the father ofBollywood superstar, Amitabh Bachchan.




Bachchan is best knownfor his early lyric poems Madhushala (The House of Wine), firstpublished in 1935, social unity was the running theme of his greatestpoetry collection. Madhushala brought instant fame. It whipped up aliterary frenzy when he recited it to huge audiences. It has beenchoreographed, and performed on stage. It was one the first pieces ofHindi poetry that was set to music, with its best selling cassettes andCDs having appeal across generations. It was later translated intoEnglish and many regional Indian languages including Bengali, Marathiand Malayalam. It forms part of a trilogy, along with Madhubala (1936)and Madhukalash (1937).
His works include Nisha Nimantran, KhadiKe Phool, Ekant Sangeet and Satrangini. In November, 1984, he wrote hislast poem Ek November 1984 on Indira Gandhi’s assassination. Though notofficially, he is considered in literary circles in India as the lastRashtriya Kavi (National Poet). His rendition of Madhushala wasbroadcast on All India Radio and is still available.
His public readings were attended by hundreds of people. Hisautobiography, consisting of four volumes namely Kya bhooloon kya yaadkaroon, Need ka nirmaan fir, Basere se door and Dashdwaar se sopaan tak(abridged and translated into English as In the Afternoon of Time) waschosen for the Saraswati Samman.
He published about 30 volumesof poetry. He translated Shakespeare's Macbeth and Othello, OmarKhayyam's Rubaiyat, the Bhagavad Gita and W.B. Yeats into Hindi.


Bachchan'sgreat collection, 'Madhushala', is often thought to be a great admirerof wonder solutions himself. It is wrongly believed that the creator ofone of the most famous poems on wine (Madhushala), never drank liquor.In fact, he had never drank liquor till he completed Madhushala. Hestarted drinking, although sparingly, later in his life, a fact that headmits to in his autobiography.



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