स्वागत

राधाकृष्ण मिरियाला ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है , पधारने के लिए धन्यवाद!

Monday, September 21, 2020

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में "हिंदी सप्ताह समापन समारोह" संपन्न

 दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा - आंध्र एवं तेलंगाणा, हैदराबाद के एम.वी.पापन्न गुप्त कक्ष में दि: 19.09.2020 को “हिंदी सप्ताह समापन समारोह” हर्षोल्लास के साथ पी.जी, शिक्षा महाविद्यालय, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय एवं प्रांतीय सभा के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रांतीय सचिव एवं संपर्क अधिकारी माननीय श्री जी.सेल्वराजन ने की। कार्यक्रम के विशेष अतिथि प्रमुख लेखक श्री बृहस्पति शर्मा, उपस्थितियों में पी.जी विभागाध्यक्ष प्रो.पी.राधिका, शिक्षा महाविद्यालय के प्राचार्य (प्रभारी) डॉ.ए.जी.श्रीराम मंचासीन रहे। 

        कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन गणमान्य सदस्यों द्वारा दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती की प्रतिमूर्ति पूजा से हुआ। कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं सचिव श्री जी.सेल्वराजन ने विशेष अतिथि का परिचय प्रस्तुत किए साथ-साथ मंचासीन गणमान्य सदस्यों का स्वागत करते हुए अपना स्वागत भाषण प्रस्तुत किया तथा राज भाषा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए हिंदी सप्ताह कार्यक्रम में भाग लिए प्रतिभागियों को बधाई दी।

        कार्यक्रम के दौरान “हिंदी सप्ताह समारोह” के उद्घाटन दि: 14-09-2020  को आयोजित भाषण प्रतियोगिता में भाग लिए सभा के पी.जी, शिक्षा महाविद्यालय के प्रवक्तागण एवं सभा कार्यालय के कार्याकर्ताओं में प्रथम, द्वितीय, तृतीय स्थान प्राप्त किए विजेताओं एवं प्रतिभागियों को विशेष अतिथि एवं अध्यक्ष जी के करकमलों से पुरस्कृत किया गया।

        विशेष अतिथि प्रमुख हिंदी लेखक श्री बृहस्पति शर्मा जी ने अपने अतिथि वक्तव्य में वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में मातृभाषा और नई शिक्षा नीति 2020 के सुझाव जिसमें मुख्य रूप से कक्षा 5 तक की शिक्षा में मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को अध्ययन के रूप में अपनाने की बात को बल देते हुए अपने विचार प्रस्तुत किया। पी.जी विभागाद्यक्ष प्रो. राधिका जी ने भारत के दक्षिण राज्यों में हिंदी के विकास पर अपना वक्तव्य दिया। शिक्षा महाविद्यालय के प्राचार्य (प्रभारी) डाॅ.ए.जी.श्रीराम ने राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा के रूप में हिंदी की योगदान के बारे में अपना भाषण प्रस्तुत किया।

        कार्यक्रम का प्रारंभ संयोजक, असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.जी.नीरजा के वक्तव्य से हुआ। मुख्य संचालन एसोसिएट प्रोफेसर एवं दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक, डॉ.बिष्णु कुमार राय ने, धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.गोरखनाथ तिवारी ने दिया ।

        सभा के पी.जी विभाग, शिक्षा महाविद्यालय के प्रवक्तागण, सभा कार्यालय के कार्यकर्तागण एवं अभिभावक उपस्थित रहकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।

                                                                                               प्रस्तुति : राधाकृष्ण मिरियाला  

 






 


Monday, September 14, 2020

"हिंदी दिवस" के सुअवसर पर "हिंदी भाषा का महत्व" पर मेरे विचार .

                            “हिन्दुस्तान की शान है हिंदी

                            हर भारतीय का सम्मान है हिंदी”                                                                                             राधाकृष्ण  मिरियाला



कोई भी व्यक्ति अपने विचारों एवं भावनाओं को दूसरों तक पहुंचाने हेतु एक भाषा की आवश्यकता पड़ती है। हर एक देश की पहचान उस देश की भाषा और संस्कृति से होती है । भाषाई एकता से ही राष्ट्रीय अखंडता सुदृढ़ होती है। किसी भी देश की एकता और स्थायित्वव में उस देश की राष्ट्र भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।


मित्रों भारत की विशिष्टता को हम सब जानते है। “अनेकता में एकता”- विभिन्न जाति,धर्म,वेश-भूषा,ढेर सारी भाषाएँ ..

हमारे भारत में बहुत सारी भाषाएँ बोली जाती हैं। लेकिन इन भाषाओं में से अधिकतर (सब से अधिक) बोली जानेवाली भाषा हिंदी है। हिंदी आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप है वैदिक संस्कृत जो साहित्य की परिनिष्टित भाषा थी। तो हम जान सकते हैं मित्रों कई भाषाएँ संस्कृत से ही विकसित हुए हैं। 



     हिंदी भाषा में 11 स्वर, 35 व्यंजन और 2 संयुक्ताक्षर होते हैं। इसकी लिपि है “देवनागरी”. इसकी विशेषता यह है कि “जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है।”
हिंदी अत्यंत सरल एवं सुमधुर भाषा है. यह एक दूसरों को जोडनेवाली भाषा है.


                                “माँ की ममता है हिंदी
                                पिता की छाया है हिंदी
                                नारी की सौभाग्य है बिंदी
                                भारत माता की बिंदी है हिंदी


     हिंदी ने भारतीय संस्कृति से संविधान निर्माण प्रक्रिया तक, पुरातन युग से आधुनिक संप्रेषण साधनों के प्रयोग तक का लंबी सफर कर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा अनेकता में एकता की भावना को भी पुष्ट किया है। भारत के अधिकतर क्षेत्रों में हिंदी ही बोली जाती है । इसीलिए इस भाषा के लिए “राज भाषा तथा राष्ट्र भाषा” के रूप में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ है।

स्वतंत्र भारत की संविधान सभा के द्वारा 14 सितंबर 1949 को ही हिंदी भाषा को राज भाषा के  रूप में घोषित किया गया। 26 जनवरी 1950 को संविधान बना। हिंदी को राज भाषा का दर्जा प्रदान किया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी भाषा को राज भाषा के तौर पर अपनाने का उल्लेख मिलता है। तब से हिंदी भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई ।

भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में अनेक कार्यक्रम होते हैं। इस दिन विद्यालयों,सरकारी कार्यालयों और अन्य जगहों पर कई प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। इसे कहीं-कहीं हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा के रूप में भी मनाते हैं। हिंदी को बढ़ावा देने तथा प्रचार- प्रसार करने एवं भाषा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से ही हिंदी दिवस मनाया जाता है। हर वर्ष जो लोग हिंदी में अच्छे कार्य तथा लोगों तक भाषा का प्रचार - प्रसार करते हैं उन्हें पुरस्कार से सम्मानित भी किया जाता है ।

हिंदी राष्ट्रभाषा,राजभाषा, संपर्क भाषा और जन भाषा के सोपानों को पार करके विश्व में अधिकतर बोली जानेवाली भाषाओं में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इससे हमें पता चलता है कि हिंदी अति शीघ्र ही विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। इस के लिए एक उदहारण के रूप में पूर्व प्रधान मंत्री अटल जी पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर  चौंका दिया था।

असली बात पर पहुंचेंगे तो समस्त भारत को एकत्र करने के सुद्देश्य से भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गांधीजी द्वारा 1918 में इंदौर के साहित्य  सम्मलेन में द.भा. हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हेतु नींव बनी और मद्रास में सभा की स्थापना हुई। इसकी प्रांतीय शाखाएँ आंध्र एवं तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु द्वारा हिंदी का प्रचार-प्रसार अत्यंत सराहनीय ढंग से पूर्ण किया जा रहा है और प्रति वर्ष लाखों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।

 इसी सन्दर्भ म            

                          " जब तक भारत के इतिहास में गाँधीजी का नाम रहेगा  

              तब तक हिन्दुस्तान में "हिंदी"का सम्मान रहेगा "


रोजगार की बात करेंगे तो आज-कल के तकनीकी के युग में सभी केंद्र एवं राज्य सरकार के साथ-साथ कई निजी संस्थाओं में भी अनेक लोगों ने नौकरी प्राप्त कर ली। उदाहरण के लिए रेलवे स्टेशन, बैंक और अन्य संस्थाओं में अनुवादकों और हिंदी अधिकारी हमें देखनो को मिलते हैं।

अतः हम सब का कर्तव्य बनता है कि हिंदी भाषा विलुप्त होने से बचाकर प्रचार-प्रसार में निरंतर लगे रहना है। हिंदी का प्रचार-प्रसार यानी हिंदी की सेवा करनेवाली सभा के कार्यकर्ता बनने के नाते मैं अपने आप को भाग्यवान समझता हूँ ।

“हिंदी केवल भाषा नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है.”


अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि मेरी मातृभाषा तेलुगु है। लेकिन मैं भी हिंदी की सेवा से जुडा हूँ। इस सन्दर्भ में मुझे लगता है ....
                    

                                मेरी मातृभाषा तेलुगु राणी है

       तो
       भारत माता की शान हिन्दी महाराणी है
         इन दोनों के बीच में अंग्रेजी नौकरानी है ।


इन्ही विचारों से मैं अपने वाणी को विराम देते हुए सभी को हृदय से आभार प्रकट करता हूँ  ।

जय हिंद  - जय हिंदी - जय भारत।

                          विडियो के लिए यहाँक्लिक करें...

 https://youtu.be/gvWL42Nn6tc 

 

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में 'शिक्षक दिवस" समारोह संपन्न

 

nf{k.k Hkkjr Çgnh çpkj lHkk & vkaèkz ,oa rsyaxk.kk] gSnjkckn esa ih th] f'k{kk egkfo|ky;] nwjLFk f'k{kk funs'kky; ,oa çkarh; lHkk ds la;qä rRokoèkku esa f'k{kd fnol euk;k x;k A

                  mä lekjksg nf{k.k Hkkjr Çgnh çpkj lHkk] gSnjkckn ds ,e oh ikiUu xqIr d{k esa g"kksZYykl ds lkFk ih th] f'k{kk egkfo|ky;] nwjLFk f'k{kk funs'kky; ,oa çkarh; lHkk ds la;qä rRokoèkku esa f'k{kd fnol laiUu gqvkA dk;ZØe dh vè;{krk çkarh; lfpo ekU;Jh th lsYojktu us xzg.k dhA eapklhu x.kekU; lnL;ksa us eq[; vfrfFk M‚-'kf'kdkar feJ] Çgnh foHkkxkè;{k] , oh dkyst] gSnjkckn ièkkjdj dk;ZØe dh 'kksHkk c<+kÃA vU; lnL;ksa esa çkarh; lHkk çcaèk fufèkikyd Jh "ksd eksgEen [kklhe fo'ks"k vfrfFk ds :i esa vklUu jgsa] lkFk &lkFk fo'ks"k mifLFkfr ds :i esa lHkk dh dks"kkè;{k Jherh ‘ksd tehyk csxe] f'k{kk egkfo|ky; ds çkpk;Z ¼çHkkjh½ M‚-, th Jhjke] nwjLFk f'k{kk funs'kky; ds lgk;d funs'kd M‚- fc".kq dqekj jk; eapklhu jgsA

                    dk;ZØe dk 'kqHkkjaHk djus ls iwoZ gky gh esa LoXkZokl gq, egkefge iwoZ jk"Vªifr Jh ç.kc eq[ktÊ dks gkÆnd J)katyh vÆir djus gsrq leLr mifLFkfr;ksa dh vksj ls nks feuV ekSu èkkj.k fd;k x;k rRi'pkr~ dk;ZØe dk fofèkor~ çkjaHk gqvkA ftlesa losZiYyh jkèkk—".ku th ds QksVks ¼rLohj½ ij ekY;kiZ.k rFkk eq[; vfrfFk ,oa vè;{k th ds dj deyksa }kjk nhi çToyu ,oa iwtk ds lkFk çkjaHk gqvkA dk;ZØe dh vxyh dM+h ds :i esa M‚- , th Jhjke] çkpk;Z ¼çHkkjh½] f'k{kk egkfo|ky;] th us eq[; vfrfFk vè;{k ,oa eapklhu ekU;oj lnL;ksa ds çfr vkstLoh ok.kh esa laf{kIr vfrfFk ifjp; ,oa Lokxr Hkk"k.k çLrqr fd;kA ftlesa d{k esa mifLFkr fofHkUu foHkkxksa ds O;oLFkkid ,oa dk;ZdrkZ rFkk çoäkvksa dk Hkh Lokxr fd;k x;kA dk;ZØe dh Jaq[kyk fujarj j[krs gq, eq[; vfrfFk] vè;{k ,oa leLr lnL; ,oa fofèkor~ lHkh foHkkxksa ds f'k{kdksa dk vknj ds lkFk lEeku fd;k x;k A lkFk &lkFk lHkk ls tqM+s leLr dk;ZdrkZvksa dks Hkh Le`fr HksaV vÆir dh xÃA          

                 dk;ZØe ds vR;ar egRoiw.kZ dM+h ds :i esa vkn'kZ f'k{kd iqjL—r M‚- 'kf'kdkar feJ th us vius eq[; vfrfFk oäO; esa f'k{kd 'kCn dh cgqeq[kh ifjHkk"kk dks çLrqr djrs gq, f'k{kd dks uhfroku] èkS;Zoku] J)k vkSj foÜokl dks ,d gh flôs ds nks igyw crkrs gq,] f'k{kdksa dks ekSfyd lans'k fn;k rFkk dk;ZØe dh ljkguk djrs gq, lfpo egksn; ,oa iwoZ rS;kjh ds :i esa tks dk;Z fd;k x;k mldh ç'kalk dhA ftlesa çkpk;Z] foHkkxkè;{k] çoäk ,oa dk;ZdrkZvksa dks èkU;okn fn;kA Jh "ksd eksgEen [kklhe th us vius oäO; esa f'k{kdksa dks lekt dk fuekZrk vkSj f=ewÆr;ksa dk Lo#i crk;kA Jherh tehyk csxe us vKku ds vaèkdkj dks nwj djusokyk T;ksfr f'k{kd dgkA lgk;d funs'kd M‚- fc".kq dqekj jk; us M‚-losZiYyh jkèkk—".ku th ds O;fäxr thou] f'k{kd vkSj ,d usrk ds :i esa mudh Hkwfedk dk Lej.k djk;kA fo'ks"k mifLFkfr oäO; esa M‚- , th Jhjke] çkpk;Z ¼çHkkjh½] f'k{kk egkfo|ky; us f'k{kdksa dks viuh lsok nsrs le; Nk=ksa dk fgr] laLFkk dk fgr vkSj  loksZPp ukxfjd dk fuekZ.k] bl ckr ij cy fn;k A ih th foHkkx ds vlksfl,V çksQslj M‚- cyÇonj dkSj] f'k{kk egkfo|ky; dh çoäk Jherh tfd;k ijohu] lHkk ds O;oLFkkid Jh ,e-jkèkk—".k us f'k{kd fnol dh 'kqHkdkeuk,¡ nsrs gq, vius fopkj çLrqr fd, A dk;ZØe ds vè;{k ,oa lfpo Jh th lsYojktu us vius vè;{kh; oäO; esa lHkh f'k{kd oxZ dks f'k{kd fnol dh 'kqHkdkeuk,¡ nsrs gq, Hkkjr ds iwoZ jk"Vªifr egkefge M‚- , ih ts vCnqy dyke th ds 'kSf{kd fopkjksa vkSj vuqHkoksa ds ckjs esa crk;kA ftLkesa f”k{kd ds ekSfyd vkn”kZ dk ifjp; fofnr gqvkA v/;{kh; oDrO; vR;ar izHkkoh ,oa iszj.kknk;h jgkA

                    dk;ZØe ds fofHkUu dfM;ksa dk lapkyu lkewfgd :i esa Ckh-,M izoDrk M‚-Mh Mh nslkÃ] M‚-ds pk#yrk] Jh ,dkacjsÜo#Mq] Jherh 'kSys"kk ,e uanwjdj vkSj eq[; lapkyu ofj"B çoäk f'k{kk egkfo|ky; ds Jh [kknj vyh [kku }kjk fd;k x;kA èkU;okn Kkiu ih th foHkkx ds vlksfl,V çksQ+slj M‚-xksj[kukFk frokjh us çLrqr fd;kA lHkk ds leLr O;oLFkkid o`an] dk;ZdrkZ o`an vkSj vfHkHkkod mifLFkr jgdj dk;ZØe dks lQy cuk;kA jk"Vª xku ds lkFk dk;ZØe laiUu gqvkA










शिक्षक दिवस के सुअवसर पर सम्मान स्वीकार करते हुए ..