हर भारतीय का सम्मान है हिंदी” राधाकृष्ण मिरियाला
कोई भी व्यक्ति अपने विचारों एवं भावनाओं को दूसरों तक पहुंचाने हेतु एक भाषा की आवश्यकता पड़ती है। हर एक देश की पहचान उस देश की भाषा और संस्कृति से होती है । भाषाई एकता से ही राष्ट्रीय अखंडता सुदृढ़ होती है। किसी भी देश की एकता और स्थायित्वव में उस देश की राष्ट्र भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
मित्रों भारत की विशिष्टता को हम सब जानते है। “अनेकता में एकता”- विभिन्न जाति,धर्म,वेश-भूषा,ढेर सारी भाषाएँ ..
हमारे भारत में बहुत सारी भाषाएँ बोली जाती हैं। लेकिन इन भाषाओं में से अधिकतर (सब से अधिक) बोली जानेवाली भाषा हिंदी है। हिंदी आधुनिक आर्य भाषाओं में से एक है। आर्य भाषा का प्राचीनतम रूप है वैदिक संस्कृत जो साहित्य की परिनिष्टित भाषा थी। तो हम जान सकते हैं मित्रों कई भाषाएँ संस्कृत से ही विकसित हुए हैं।
हिंदी भाषा में 11 स्वर, 35 व्यंजन और 2 संयुक्ताक्षर होते हैं। इसकी लिपि है “देवनागरी”. इसकी विशेषता यह है कि “जो लिखा जाता है वही पढ़ा जाता है।”
हिंदी अत्यंत सरल एवं सुमधुर भाषा है. यह एक दूसरों को जोडनेवाली भाषा है.
हिंदी ने भारतीय संस्कृति से संविधान निर्माण प्रक्रिया तक, पुरातन युग से आधुनिक संप्रेषण साधनों के प्रयोग तक का लंबी सफर कर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा अनेकता में एकता की भावना को भी पुष्ट किया है। भारत के अधिकतर क्षेत्रों में हिंदी ही बोली जाती है । इसीलिए इस भाषा के लिए “राज भाषा तथा राष्ट्र भाषा” के रूप में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ है।
स्वतंत्र भारत की संविधान सभा के द्वारा 14 सितंबर 1949 को ही हिंदी भाषा को राज भाषा के रूप में घोषित किया गया। 26 जनवरी 1950 को संविधान बना। हिंदी को राज भाषा का दर्जा प्रदान किया गया। संविधान के अनुच्छेद 343 में हिंदी भाषा को राज भाषा के तौर पर अपनाने का उल्लेख मिलता है। तब से हिंदी भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाने की प्रथा प्रारंभ हुई ।
भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में अनेक कार्यक्रम होते हैं। इस दिन विद्यालयों,सरकारी कार्यालयों और अन्य जगहों पर कई प्रकार की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। इसे कहीं-कहीं हिंदी सप्ताह, हिंदी पखवाड़ा के रूप में भी मनाते हैं। हिंदी को बढ़ावा देने तथा प्रचार- प्रसार करने एवं भाषा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से ही हिंदी दिवस मनाया जाता है। हर वर्ष जो लोग हिंदी में अच्छे कार्य तथा लोगों तक भाषा का प्रचार - प्रसार करते हैं उन्हें पुरस्कार से सम्मानित भी किया जाता है ।
हिंदी राष्ट्रभाषा,राजभाषा, संपर्क भाषा और जन भाषा के सोपानों को पार करके विश्व में अधिकतर बोली जानेवाली भाषाओं में तीसरा स्थान प्राप्त किया है। इससे हमें पता चलता है कि हिंदी अति शीघ्र ही विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है। इस के लिए एक उदहारण के रूप में पूर्व प्रधान मंत्री अटल जी पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर चौंका दिया था।
असली बात पर पहुंचेंगे तो समस्त भारत को एकत्र करने के सुद्देश्य से भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गांधीजी द्वारा 1918 में इंदौर के साहित्य सम्मलेन में द.भा. हिंदी प्रचार सभा की स्थापना हेतु नींव बनी और मद्रास में सभा की स्थापना हुई। इसकी प्रांतीय शाखाएँ आंध्र एवं तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु द्वारा हिंदी का प्रचार-प्रसार अत्यंत सराहनीय ढंग से पूर्ण किया जा रहा है और प्रति वर्ष लाखों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं।
इसी सन्दर्भ म
" जब तक भारत के इतिहास में गाँधीजी का नाम रहेगा
रोजगार की बात करेंगे तो आज-कल के तकनीकी के युग में सभी केंद्र एवं राज्य सरकार के साथ-साथ कई निजी संस्थाओं में भी अनेक लोगों ने नौकरी प्राप्त कर ली। उदाहरण के लिए रेलवे स्टेशन, बैंक और अन्य संस्थाओं में अनुवादकों और हिंदी अधिकारी हमें देखनो को मिलते हैं।
अतः हम सब का कर्तव्य बनता है कि हिंदी भाषा विलुप्त होने से बचाकर प्रचार-प्रसार में निरंतर लगे रहना है। हिंदी का प्रचार-प्रसार यानी हिंदी की सेवा करनेवाली सभा के कार्यकर्ता बनने के नाते मैं अपने आप को भाग्यवान समझता हूँ ।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि मेरी मातृभाषा तेलुगु है। लेकिन मैं भी हिंदी की सेवा से जुडा हूँ। इस सन्दर्भ में मुझे लगता है ....
मेरी मातृभाषा तेलुगु राणी है
इन्ही विचारों से मैं अपने वाणी को विराम देते हुए सभी को हृदय से आभार प्रकट करता हूँ ।
जय हिंद - जय हिंदी - जय भारत।
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1 comment:
क्या लिखूँ, श्रीमान?
आप... आप ही हैं,👌💐😊
बहुत अच्छा है सर जी।
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