महादेवी वर्मा
(1907-1987)
जन्म : २६ मार्च १९०७
स्थान : फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश )
पिता : गोविन्द सहाय वर्मा
प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए.,
भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण ,ज्ञानपीठ पुरस्कार
रचनाएँ : नीहार, रश्मि ,संध्या गीत ,दीप शिखा ..........
महादेवी वर्मा की एक कविता 'नीहार' से!
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करुणा कितने सन्देश
पथ में बिछ जाते बन पराग ;
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग ;
आँसू लेते वे पद पखार !
हँस उठते पल में अर्थ नैन
धुल जाता ओंठों से विषाद,
छा जाता जीवन में वसंत
लूट जाता चिर संचित विराग ;
आँखें देतीं सर्वस्व वार !!!!
महादेवी वर्मा छायावाद के आधार स्तंभों में से एक हैं । अज्ञात प्रियतम के प्रति वेदना भाव की अभिव्यक्ति उनके काव्य में प्रमुखता से हुई।वेदना और करुणा की प्रधानता के कारण महादेवी जी को आधुनिक मीरा कहा जाता हैं ।अज्ञात प्रियतम के प्रति विरह वेदना की भावना के कारण ही उनकी काव्य में रहस्यवाद की प्रमुखता हैं उनकी कृतियाँ ---नीहार,रश्मि ,नीरजा,सांध्यगीत एवं दीपशिखा में सर्वत्र वेदना व्याप्त हैं।
इस प्रकार महादेवी के काव्य में वेदना तत्व हैं।
इतना ही नहीं इनके काव्यों में मुख्यता: हमें ये दिखाई पड़ता हैं ।
१. प्रेम वेदना की गहनता
२. करुणा की प्रधानता
३. नारी सुलभ सात्विकता
४. महादेवी की आध्यात्मिकता
५. भक्ती की तन्मयता
भक्ति के विषय में महादेवी जी के काव्य में आध्यात्मिकता के साथ- साथ भक्ति भाव भी मुखुरित होता हैं। भक्ति भाव से पूजा अर्चना करने के लिए देव की प्रतिमा के श्रृंगार की सारी सामग्री सजा कर वे पूजा अर्चना में लीन हो जाती हैं। हाँ सामग्री का रूप सामान्य भक्त की सामग्री से भिन्न हैं किन्तु पूजा का भाव वही हैं।
क्या पूजा क्या अर्चन रे ?
उस असीम का सुन्दर मंदिर मेरा लघुतम जीवन रे !
मेरी श्वासें करती रहतीं नित प्रिय का अभिनन्दन रे !!
इस पूजा - अर्चना में पार्थिवता नहीं हैं,किन्तु तन्मयता वही हैं जो एक भक्त में होती हैं इसलिए यह कहा जा सकता है की महादेवी के काव्य में उपलब्ध वेदना भक्ति की तन्मयता से परिपूर्ण है।
६. विरह वेदना की निरंतरता
आदि को हम देख सकते हैं ।
महादेवी वर्मा की रहस्य भावना
महादेवी वर्मा छायावाद की प्रमुख कवयित्री हैं। छायावादी कविता की एक प्रमुख विशेषता है उसमें पायी जाने वाली रहस्यवादी भावना जब कवि उस आज्ञा सत्ता को प्रकृति में सर्वत्र देखता हैं, उससे अपना सम्बन्ध जोड़कर विरह निवेदन व्यक्त करता है और उस अज्ञात प्रियतम से मिलने के लिए छठपठाता है तो इस प्रकार के भावों को व्यक्त करनेवाली कविता को रहस्यवादी कविता कहा जाता है। प्रेम की यह भावना लौकिक ना होकर अलौकिक होती हैं जिसमे जीवात्मा की पीड़ा,वेदना, टीस एवं कसक का वर्णन किया जाता है।
उदा :
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल !
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलौकित कर !!
महादेवी के काव्य में प्रगीती तत्व को भी हम देख सकते हैं ।
गीत में किसी एक विचार ,भाव या घटना या चित्रण तन्मयता के साथ किया जाता है । इसकी रचना गेय पदों में होती है तथा उसमें भाषा की सुकुमारता विद्यामान रहती है गीतों में प्रायः वय्यक्तिक अनुभूतियाँ अर्थात आत्माभिव्यक्ती रहती है ।
विश्वकोष के अनुसार --"गति काव्य में विशुद्ध कलात्मक धरातल पर कवि के अंतर्मुखी जीवन का उदघाटन प्रमुख रूप से होता है और उसमे उसके हर्ष-उल्लास, सुख-दुःख एवं विषाद को वाणी प्रदान की जाती हैं " भारतीय विचारक डा. श्याम सुन्दरदास ने भी 'प्रगीती' की परिभाषा में आत्माभिव्यन्जना को प्रमुखता देते हुए कहा है --"गीति काव्य के छोटे-छोटे गेय पदों में मधुर भावानापन्न स्वाभाविक आत्म निवेदन रहता है। इन पदों में शब्द की साधना के साथ-साथ संगीत के स्वरों का भी उत्कृष्ट साधना रहती है। इनकी भावना प्रायः कोमल होती है और एक-एक पद में पूर्ण होकर समाप्त हो जाती है। " गीति काव्य में निजीपन के साथ-साथ रागात्मकता का होना अनिवार्य है डा . दशरथ ओझा के अनुसार" जिस काव्य में एक तथ्य या एक भाव के साथ-साथ एक ही निवेदन, एक हीरास एक ही परिपाटी हो ---वह गीति काव्य है। "
इस विवेचना के आधार पर गीतिकाव्य के तत्व को निरूपित किया जा सकता हैं :
१.आत्मभिव्यन्जकता
२.रागात्मकता
३.काल्पनिकता
४.संगीतात्मकता
५.भावगत एकरूपता
६.आकारगत लघुता
७.शैली गत सुकुमारता
इतना ही नहीं महादेवी वर्मा की प्रतीक योजनाओं को भी देख सकते हैं ।
महादेवी वर्मा जीजी कविता में वेदना एवं रहस्यवाद की प्रधानता है। उन्होंने भी अपनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति में प्रतीकों का सहारा लिया है। प्रतीकात्मक भाषा
का प्रयोग करके महादेवी जी ने एक ओर तो सूक्ष्म भावों एवं व्यापारों को अभिव्यक्त किया है तो दूसरी ओर उसमें कला जा अपूर्व चमत्कार भी समाविष्ट कर दिया है ।
उदा:::
उदा:::
प्रिय संध्या गगन मेरा जीवन
यह क्षितिज बना धुंधला विराग
नव अरुणा अरुणा मेरा सुहाग
छाया सी काय वीतराग
सुधि भीने स्वप्न रंगीले घन
समग्रतः यह कहा जा सकता है कि प्रतीकों का प्रयोग करते हुए महादेवी जी ने अपने काव्य में रमणीयता का विधान किया है। प्रतीकात्मकता प्रायः सभी छायावादी कवियों की एक प्रमुख काव्यगत विशेषता मानी गयी है।
जय हिंदी --------जय हिंद !!!
अविस्मरणीय आधुनिक मीरा नारी वादी चेतना का स्वरुप
श्री महादेवी वर्मा को फिर से एक बार हिंदी जगत की तरफ जन्मदिन की शुभकामनाएँ!!!
राधाकृष्ण मिरियाला
9949707707-9618707707
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